कविता- खोखले शब्द
जब शब्द खोखले हो जाते हैं, तब आवाज़ भी शोर मचाती है; और कान रेगिस्तान बन जाते हैं, जिनमें रेत भर जाती है l शब्दों की चिता अभी भी सिर्फ सुलग रही है, दूर जलती अग्नि चक्षुओं को चुभ रही है; इ र्द-गिर्द वो सब लील जाती है, शब्द कुछ जल रहे हैं। जब तक चेतना आएगी, सिर्फ राख़ रह जाएगी; शब्द जल चुके होंगे, और ये ज़मीं ज़मींदोज़ हो जाएगी। ...