कविता- खोखले शब्द
जब शब्द खोखले हो जाते हैं, तब आवाज़ भी शोर मचाती है;
और कान रेगिस्तान बन जाते हैं, जिनमें रेत भर जाती है l
शब्दों की चिता अभी भी सिर्फ सुलग रही है, दूर जलती अग्नि चक्षुओं को चुभ रही है;
इर्द-गिर्द वो सब लील जाती है, शब्द कुछ जल रहे हैं।
जब तक चेतना आएगी, सिर्फ राख़ रह जाएगी;
शब्द जल चुके होंगे, और ये ज़मीं ज़मींदोज़ हो जाएगी।
- अभिनव
Good poetry is deep but understandable❤
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